हल्लो दोस्तो कैसे हैं आप सब दोस्तो आपके लिए एक ओर मस्त कहानी लेकर हाजिर हूँ कहानी कुछ ज़्यादा ही लंबी है इसलिए इसके काफ़ी पार्ट बनाने पड़ेंगे . अब आप कहानी का मज़ा लीजिए कहानी कुछ इस तरह शुरू होती है ……………
आज उसे नींद नही आ रही थी. वो करवटें बदल रहा था. आज उसकी जैल की आखरी रात थी. कल का सूरज उसके लिए मुक्ति का सूर्योदय लेके आनेवाला था. उसकी आँखे चारो ओर घूमी और मन ही मन मे आजूबाजू की खोली का निरीक्षण किया. उसने महसूस किया उसके अलावा सब खर्राटे भर रहे है. मानो किसिको किसीकि पड़ी ही नही. बास्केट मे पड़े हुवे सादे फल की तरह सब को एक कोठरी मे लगाया हुवा था. वो अकेला ही था अपनी अकेली कोठरी के साथ. वो अकेला था जिसकी आँखो से आज कई साल के बाद नींद गायब थी. उसे याद आया जैल यात्रा के पहले पाँच साल. बहुत यातना सही थी उसने शुरुआत के सालो मे. बहुत मार खाई थी, गालिया सुनी थी, लाते खाई थी. थर्ड डिग्री का भी प्रयोग उस पर किया गया था. लेकिन जिगर था ना, सही मे उसकी 36 की छाती थी जो उसे सबकुच्छ सहन करने पर मुस्ताक़ थी. पहले तो उसको सब क़ैदी के साथ रखा गया था. रात, रात भर अलग अलग क़ैदी के खर्राटे की आवाज़े, पसीने की गंध, कोई कोई तो वोही कोने पे दीवार पर मूत देता था, वो सहन ना होने वाली बदबू, मैली चादर, मैली चटाई. पहले 7 दिन उसे नींद नही आई थी. तब तो उस पर थर्ड डिग्री का प्रयोग भी शुरू नही हुवा था. लेकिन महॉल नया था और वो भी अलग समाज, अलग आदमी, अलग अंदाज़.
लेकिन 7 दिन बाद वो थका भी था और उसकी 6थ सेन्स ने जवाब दे दिया था कि यहा वो लंबी यात्रा करनेवाला है तभी थकान से, मजबूरी से, भरपूर नींद मे डूब गया था. धीरे धीरे उसे आदत हो चली थी क़ैदी ओ की, गंध की, बदबू की, खर्राटे की…..
अचानक उसके सामने कई सालो के बाद अंधेरा च्छा गया. जैसे चक्कर से आने लगे. वो सिर दोनो हथेली से कस के दबाकर अपने दोनो पैर के घुटनो के बीच सिर लेगया याने सिकुड़कर सो गया. थोड़ी देर यू ही पड़ा रहा, तभी धीरे धीरे उसकी आँखो के सामने सूर्योदय का प्रकाश होने लगा और एक संत महात्मा दिखाई दिए, और थोड़ी देर के बाद एक औरत के नंगे स्तन, छाती दिखाई दी…. और फिर सबकुच्छ ठीक हो गया. खुली आँख से ही ये नज़ारा वो हमेशा देखता था लेकिन अंत मे मानो जैसे नींद से उसकी आँख खुल रही हो ऐसा एहसास होता था.
ये उसके साथ पहलिबार नही हुवा था. अक्सर हुवा करता था. लेकिन आज करीब 5 साल के बाद फिर उसके साथ ऐसा हुवा था. करीब बचपन से उसके साथ ये हुवा करता था.
1. पहले आँखो के सामने गहरा अंधेरा छा जाता था.
2. फिर एक लंबे संत, साधु महात्मा दिखते थे, लंबे बाल, लंबी दाढ़ी, मुस्कुराता हुवा चेहरा.
3. और अंत मे एक औरत की खुली छाती, स्तन दिखाई देता था.
उस औरत का नही तो चेहरा दिखता था नही तो पेट से नीचे का हिस्सा. सिर्फ़ स्तन दिखाई देते थे. वो भी कोई औरत सोई हुई हो और उसके स्तन के निपल्स तनकर खड़े हो ऐसी मुद्रा मे वो हरदम देखता था. बचपन मे तो उसे खास पता नही चलता था. लेकिन 12 साल के बाद उसे मालूम हुवा के अंत मे जो वो देखता है उसे स्तन कहते है.
वो खड़ा हुवा, चलकर दो कदम आगे आया, उसकी खोली मानो एक छोटा सा कॉटेज था. एक आम आदमी आराम से रह सके ऐसी सुविधा उसे पिछछले 5 सालो मे दी गयी थी. 20/22 फीट की चौड़ाई वाली खोली, एकदम धूलि हुई और रोज बदलने वाली बिस्तर, चदडार, ठंडा पानी, पंखा, एक बड़ा सा विंडो जो अंदर के बगीचे मे खुलता था ताकि ताजी हवा और बगीचे के फुलो की खुसबूदार हवा आती जाती रहे. अच्छा खाना उसे मिलता था. इसके अलावा आने जाने वाला हर कोई आदमी उसकी ज़रूरत पुछता था, लेकिन उसने कभी कुच्छ ख्वाहिश बताई ही नही. क्यो कि वो जानता था की सुविधा देनेवाला स्टाफ कही से पैसा ख़ाता था और कोई तो था उसका दोस्त या दुश्मन जो पैसे देकर उसे ये सुविधा पहुचाता था. उसका पहला 5 साल जिस यातना मे गुजरा था उसकी बिल्कुल उल्टा लास्ट 5 सालो मे उसे VईP ट्रीटमेंट दी गयी थी. उसे कुच्छ अजीब बिल्कुल लगा था लेकिन उसकी 6थ सेन्स उसे आगाज़ कर रही थी कि शायद उसके साथ यही होनेवाला था. जैसे सूर्योदय के बाद सूर्यास्त निस्चित है. वैसे पहले 5 साल अंधेरे के बाद आखरी 5 साल सूर्योदय था और ना जाने कल से फिर उसके साथ क्या होने वाला तय था. उसकी दो हाथो से खोली के सलाखे पकड़ी और चेहरा सलाखो के बीच सटाया और दाहिनी ओर नज़र घुमा के दीवार की घड़ी को देखा, अभी तो रात के 3 बजे थे. यानी की सुबह मे 3 घंटा बाकी थे. उसने चक्कर काटना शुरू किया, नींद आँखो से कोसो दूर थी. कल मुक्ति का दिन था या फिर कोई नयी कहानी शुरू होने वाली थी, ये वो नही जानता था. हा उसका मन ज़रूर कहता था की ज़िंदगी मे आनेवाला या तो कल से शुरू होनेवाला समय कुच्छ समय के लिए काँटे की टक्कर होनेवाला था. शायद इसीलिए किसीने ने उनको आखरी 5 साल VईP ट्रीटमेंट दिलाई थी. उसने कई बार जानने की कोशिश की थी की वो कौन है जो उस पर इतना मेहरबान हो रहा है. लेकिन कुच्छ जान नही पाया था. फिर उसने कोशिश छ्चोड़ दी थी. आराम से वो ट्रीटमेंट सहता रहा और मुक्ति का इंतेज़ार कर रहा था. कल करीबन 12 साल के बाद उसकी ज़िंदगी का सूर्योदय होना था.