ठाकुर ने जैसे ही अपनी लंड पे रूपाली का हाथ खींचा तो रूपाली ने हाथ फ़ौरन वापिस खींचना चाहा. पर ठाकुर की गिरफ़्त मज़बूत थी. उसने हाथ हटने ना दिया और अपने लंड पे रूपाली के हाथ से मुट्ठी सी बना दी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर हटा नही पाई. एक औरत का हाथ अपने लंड पे ठाकुर को अलग ही मज़ा दे रहा था. इस लंड का आखरी बार इस्तेमाल कब हुआ था ये ठाकुर को याद तक नही था. उसने धीरे धीरे रूपाली के हाथ को आगे पिछे करना शुरू कर दिया और लंड को उसके हाथ से सहलाने लगा. थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ हटा लिया पर रूपाली का हाथ अपने आप लंड पे आगे पिछे होता रहा. ठाकुर के मुँह से आह आह की आवाज़ ज़ोर से निकलने लगी. तेल लगा होने के कारण बड़ी आसानी से लंड रूपाली के हाथ में फिसल रहा था. गर्मी बढ़ती जा रही थी. इतने वक़्त से ठाकुर ने चुदाई नही की थी इसलिए अब खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. वो जानते थे के ज़्यादा वक़्त नही टिक पाएँगे वो इस गरम जिस्म के सामने.
रूपाली इस हमले के लिए तैय्यार नही थी. उसने लंड बहुत कम अपने हाथ में पकड़ा था वो भी अपने पति के बार बार ज़िद करने पर. उसने हाथ हटाना चाहा पर हटा नही पाई. ठाकुर ने अभी भी उसका हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उसकी उंगलियाँ अपने लंड पे लपेटकर मुट्ठी सी बना दी थी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर फिर नाकाम रही. अब उसके ससुर ने हाथ आगे पिछे करना शुरू कर दिया था और पूरा लंड रूपाली के तेल लगे हाथ में आगे पिछे हो रहा था. ठाकुर ने थोड़ी देर बाद हाथ हटा लिया पर रूपाली ने अपना हाथ हिलाना जारी रखा. आज पहली बार वो अपनी मर्ज़ी से एक लंड को पकड़ रही थी और उसका मज़ा ले रही थी. ठाकुर के लंड की लंबाई का अंदाज़ा उसे सॉफ तौर पे हो रहा था. लग रहा था जैसे किसी लंबे मोटे डंडे पे उसका हाथ फिसल रहा हो. ठाकुर के मुँह से जैसे जैसे आह निकलती रूपाली के हाथ की रफ़्तार और तेज़ होती जाती . वो पिछे से अपने ससुर से चिपकी खड़ी थी और उसका लंड हिला रही थी. छातियाँ उसकी कमर पर रगर रही थी और नीचे से अपनी चूत ठाकुर की गांद पे दबा रही थी. धीरे धीरे ठाकुर की आह तेज़ होती चली गयी और रूपाली पागलों की तरह लंड हिलाने लगी अचानक उसके ससुर की जिस्म थर्रा उठा, एक लंबी आह निकली और एक गरम सा लिक्विड रूपाली के हाथ पे आ गिरा. ठाकुर के लंड ने माल छ्चोड़ दिया था. रूपाली ने लंड हिलाना चालू रखा और लंड से पिचकारी पे पिचकारी निकलती रही. कुच्छ रूपाली के हाथ पे गिरी, कुच्छ सामने बिस्तर पर और और ज़मीन पर. जब माल निकलना बंद हुआ तो ठाकुर की साँस भारी होनी लगी, उसका जिस्म रूपाली की गिरफ़्त में ढीला पड़ने लगा तो वो समझ गयी के काम ख़तम हो चुका है. वो ठाकुर के जिस्म से शरमाते हुए अलग हुए, तेल की कटोरी उठाई और कमरे से बाहर आ गयी.
बाहर आकर रूपाली सीधा अपने कमरे में पहुँची. आज बहुत सी चीज़ें पहली बार हुई थी. उसने पहली बार अपनी मर्ज़ी से लंड पकड़ा था, पहले बार किसी मर्दाने जिस्म से अपनी मर्ज़ी से सटी थी, पहली बार किसी मर्द के साथ गरम हुई थी और उसके और ससुर के बीच पुराना रिश्ता टूट चुका था. अब जो नया रिश्ता बना था वो वासना का था, जिस्म की भूख का था. वो ठाकुर के लंड को को तो हिलाके ठंडा कर आई थी पर खुद उसके जिस्म में जैसी आग लग गयी थी. चूत गीली हो गयी थी और लग रहा था जैसे उसमें से लावा बहके निकल रहा हो. उसके हाथ पे अभी भी ठाकुर के लंड से निकला पानी लगा हुआ था. वो अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. टांगे खुद ही मूड गयी, सारी उपेर खींच गयी, पॅंटी सरक कर घुटनो तक आ गयी, हाथ चूत तक पहुँचा और फिर जैसे उसकी टाँगो के बीच एक जुंग का आगाज़ हो गया.
दरवाज़े खटखटाने की आवाज़ से रूपाली की आँख खुली तो देखा के सुबह का सूरज आसमान में काफ़ी उपेर जा चुका था. रात कब उसकी आँख लग गयी उसे पता तक ना चला. सुबह देर तक सोती रही. भूषण फिर जगाने आया था. उसे अपने उठ जाने का बताकर रूपाली बाथरूम में पहुँची. हालत अभी भी कल रात वाली ही थी. पॅंटी अभी तक घुटनो में ही फासी हुई थी और ठाकुर का माल अभी भी हाथ पे ही लगा हुआ सूख चुका था. उसने बाथरूम में पहुँचकर अपने कपड़े उतारे और नंगी खड़ी होकर फिर शीशे में देखने लगी. आज जो उसे नज़र आया वो उसने पहले कभी नही देखा था. अबसे पहले शीशे में उसे सिर्फ़ एक परिवारिक औरत नज़र आती थी जिसकी भगवान में बहुत श्रद्धा थी. पर आज उसे एक नयी औरत नज़र आई. वो औरत जो चीज़ों को अपने हाथ में लेना जानती थी. जो अपने जिस्म का का इस्तेमाल करना जानती थी. जो हर चीज़ पे काबू पाना चाहती थी. जो अब और प्यासी ना रहकर अपने जिस्म की आग मिटाना चाहती थी. और सबसे ज़्यादा, जो ये पता लगाना चाहती थी के उसके पति के साथ क्या हुआ था. कौन था जिसने एक सीधे सादे आदमी की हत्या की थी.