और भी चपल हो गया और चूत के अन्दर बाहर आसानी से फिसलने लगा। प्रगति के कामोन्माद को देख कर मास्टरजी का नियंत्रण भी टूट गया और उन्होंने एक संपूर्ण वार के साथ अपनी मोक्ष प्राप्ति कर ली। उनकी तृप्त आत्मा से एक सुखद चीत्कार निकली जिसने प्रगति की योगनिद्रा को भंग कर दिया। उनके लिंग से एक गाढ़ा, दमदार और ओजस्वी वीर्य प्रपात छूटा जो उन्होंने प्रगति के पेट और वक्ष स्थल पर उंडेल दिया। फिर थक कर खुद भी उस पर गिर गए।
प्रगति ने उनको अपनी बाँहों में भर लिया। प्रगति और मास्टरजी के शरीर उनके वीर्य रूपी गौंद से मानो चिपक से गए और वे न जाने कब तक यूँ ही लेटे रहे।
एक युग के बाद दोनों उठने को हुए तो पता चला की वीर्य गौंद से वे वाकई चिपक गए हैं। अलग होने की कोशिश में मास्टरजी के सीने के बाल खिंच रहे थे और कुछ टूट कर प्रगति के वक्ष पर लिस गए थे। प्रगति को अचानक शर्म सी आने लगी और वह अपने आप को छुड़ा कर अपने कपड़े लेकर गुसलखाने की ओर भाग गई। वह नहा कर बाहर आई तो मास्टरजी ने उसको एक बार फिर से आलिंगनबद्ध कर लिया और कृतज्ञ नज़रों से शुक्रिया देने लगे। प्रगति ने उनका गाल चूम कर उनका धन्यवाद किया और घर जाने के लिए निकलने लगी।
मास्टरजी ने उसे पिछ्वाड़े से बाहर जाने का रास्ता बताया। वह जाने ही वाली थी कि उसे याद आया और बोली,”मास्टरजी, आप अंजलि को कोई मिठाई देने वाले थे। उस समय तो वह जल्दी में थी। कहो तो मैं ले जाऊं। मेरी बहनें खुश हो जायेंगी !”
मास्टरजी एक ही दिन में तीन लड़कियों को खुश करने का मौका नहीं गवांना चाहते थे सो झट से बोले,”हाँ हाँ, क्यों नहीं। तुम पूरा डब्बा ही ले जाओ।” अब मुझे मिठाई की ज़रुरत नहीं रही। मेरी आत्मा तुम्हारे होंटों का रस पी कर हमेशा के लिए मीठी हो गई है।”
यह कहते हुए उन्होंने प्रगति को मिठाई का डब्बा पकड़ा दिया।
फिर उसकी आँखों में आँखें डाल कर बोले,”कल आओगी तो आज का मज़ा भूल जाओगी। कल एक विशेष पाठ पढ़ाना है तुम्हें। बोलो आओगी ना ? ”
“जी पूरी कोशिश करूंगी !” अब तो प्रगति को रति सुख का चस्का लग गया था। लड़कियों को ख़ास तौर से इस चस्के का नशा बहुत गहरा लगता है !!!
मास्टरजी ने पहले घर के बाहर जा कर मुआइना कर लिया कि कहीं कोई है तो नहीं और फिर प्रगति को घर जाने की आज्ञा दे दी।
प्रगति अपनी सूजी हुई योनि लिए अपने घर को चल दी।
किसी न किसी कारणवश मास्टरजी प्रगति से अगले 4-5 दिन नहीं मिल सके। प्रगति कोई न कोई बहाना करके उन्हें टाल रही थी। बाद में मास्टरजी को पता चला कि प्रगति को मासिक धर्म हो गया था। वे खुश हो गए। कामुकता के तैश में वे यह तो भूल ही गए थे कि उनकी इस हरकत से प्रगति गर्भ धारण कर सकती थी। इस परिणाम के महत्व को सोचकर उनके रोंगटे खड़े हो गए। वे ऐसी गलती कैसे कर बैठे। अपने आप को भाग्यशाली समझ रहे थे कि वे इतनी बड़ी भूल से होने वाले संकट से बच गए। उन्होंने तय किया ऐसा जोखिम वे दोबारा नहीं उठाएँगे।
उन्हें पता था कि आम तौर पर लड़की के मासिक धर्म शुरू होने से लगभग दस दिन पहले और लगभग दस दिन बाद तक का समय गर्भ धारण के लिए उपयुक्त नहीं होता। मतलब कि इस दौरान किये गए सम्भोग में लड़की के गर्भवती होने की सम्भावना कम होती है। कुछ लोग इसे सुरक्षित समय समझ कर बिना किसी सावधानी (कंडोम) के सम्भोग करना उचित समझते हैं। वैसे कई बार उनकी यह लापरवाही उन्हें महंगी पड़ती है और लड़की के गर्भ में अनचाहा बच्चा पनपने लगता है। अगर लड़की अविवाहित है तो उस पर अनेक सामाजिक दबाव पड़ जाते हैं जिससे उसके तन और मन दोनों पर दुष्प्रभाव होता है। एक गर्भवती के लिए ऐसे दुष्प्रभाव बहुत हानिकारक होते हैं। गर्भ धारण तो एक लड़की तथा उसके परिवार वालों के लिए सबसे ज्यादा खुशी का मौका होना चाहिए न कि समाज से आँखें चुराने का।
मास्टरजी ने भगवान का दुगना शुक्रिया अदा किया। एक तो उन्होंने प्रगति को गर्भवती नहीं बनाया दूसरे उन्हें प्रगति के मासिक धर्म की तारीख पता चल गई जिससे वे उसके साथ सुरक्षित सम्भोग के दिन जान गए। जिस दिन मासिक धर्म शुरू हुआ था उस दिन से दस दिन बाद तक प्रगति गर्भ से सुरक्षित थी। यानि अगले पांच दिन और।
यह सोच सोच कर मास्टरजी फूले नहीं समा रहे थे कि अगले पांच दिनों में वे प्रगति के साथ निश्चिन्तता के साथ मनमानी कर पाएंगे। आज प्रगति पांच दिनों के बाद आने वाली थी। यह सोचकर उनके मन में लड्डू फूट रहे थे और उनका लंड प्रत्याशित आनंद से फूल रहा था।