फिर प्रगति से बोले,”शहद सेहत के लिए अच्छा होता है। इसे तो चाट सकती हो ना?”
प्रगति बिना उत्तर दिए झुक कर उनके पेट पर से शहद चाटने लगी। धीरे धीरे उसका मुँह उनके लिंग के करीब आता जा रहा था। मास्टरजी को यह बहुत ही उत्तेजक लग रहा था। उसके मुँह से होती गुदगुदी के आलावा उसके बालों की लटें मास्टरजी के पेट पर लोट कर उन्हें गुदगुदा रहीं थीं। जब प्रगति ने सारा शहद चाट लिया तो उन्होंने इस बार शहद अपने लंड की छड़ पर लगा दिया और प्रगति को देखने लगे। प्रगति ने उनके लंड की छड़ को चाटना शुरू किया। वह इस कला में अबोध थी और पर उसका निश्चय मास्टरजी को खुश करने का था सो जैसे बन पड़ रहा था अपनी जीभ से कर रही थी। मास्टरजी को प्रगति की अप्रशिक्षित विधि भी अच्छे लग रही थी क्योंकि उसमें सच्चा प्यार था। मास्टरजी उसको इशारों से बताते जा रहे थे कि किस तरह लंड की छड़ को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की तरफ चाटा जाता है। वे अपनी जीभ से अपनी बीच की उंगली पर नमूने के तौर पर क्रिया कर रहे थे और प्रगति उन्हें देख देख कर उनके लंड पर वही प्रक्रिया दोहरा रही थी।
आखिर में मास्टरजी ने शहद अपने लंड के सुपारे पर लगा दिया और थोड़ा बहुत छड़ पर भी मल लिया। प्रगति को थोड़ा सुस्ताने का मौका मिला और जब मास्टरजी दोबारा लेटे तो उसने पहली बार उनके लंड के सुपारे को अपने मुँह में लिया। मास्टरजी को उसके मुँह की गर्माइश बहुत अच्छी लगी और उनका लंड उत्तेजना से और भी फूल गया। प्रगति सुपारे पर लगे शहद को लौलीपॉप की तरह चूस रही थी। मास्टरजी संवेदना में छटपटाने लगे और उनका लिंग इधर उधर हिलने लगा। प्रगति उसको मुँह में रखने के लिए संघर्ष करने लगी और आखिरकार फतह पा ली। उसने उनके सुपारे को मुँह में ले ही लिया। अब मास्टरजी ने उसे लंड को मुँह के और अन्दर लेने का संकेत किया। सुपारा बहुत बड़ा था और प्रगति का मुँह छोटा लग रहा था पर प्रगति ने किसी तरह उसे मुँह में ले ही लिया। मास्टरजी ने अपने मुँह में अपनी उंगली डाल कर प्रगति को अगली क्रिया का प्रदर्शन किया। प्रगति उनके दर्शाए तरीके से उनके लंड को मुँह के अन्दर बाहर करने लगी।
कुछ देर में जैसे उसका मुँह उनके लंड के लायक खुल गया और वह लगभग पूरा लंड अन्दर-बाहर करने लगी। बस एक-डेढ़ इंच ही बाहर रह रहा था। मास्टरजी को अत्याधिक आनंद आ रहा था और वे कुछ कुछ आवाजें निकालने लगे थे।
प्रगति सांस लेने के लिए थोड़ा रुकी तो मास्टरजी उठ कर खड़े हो गए और प्रगति को अपने सामने घुटनों पर बैठने का आदेश दे दिया। अब उन्होंने प्रगति के मुख में लंड प्रवेश करते हुए उसके मुख को चोदने लगे। उन्होंने प्रगति का सर उसकी चोटी से पकड़ लिया और सम्भोग समान धक्के लगाने लगे। जब उनका लंड ज्यादा अन्दर चला जाता तो प्रगति का गला घुटने लगता और उसकी खांसी सी उठ जाती। मास्टरजी थोड़ा रुक कर फिर शुरू हो जाते। वे उसके मुँह और गले की धारण क्षमता बढ़ाना चाहते थे जिससे उनका पूरा लंड अन्दर जा सके। पर शायद यह संभव नहीं हो पा रहा था। कुछ तो प्रगति को अभ्यास नहीं था और कुछ उसे गला घुटने का डर भी था।
मास्टरजी ने आखिर प्रगति को बिस्तर पर सीधा (पीठ के बल) लेटने को कहा और उसके सिर को बिस्तर के किनारे से नीचे को लटका दिया। सिर के अलावा उसका पूरा शरीर बिस्तर पर था और उसका सिर पीछे की तरफ हो कर गर्दन से नीचे लटक रहा था। उन्होंने कुछ तकियों का सहारा लेकर उसके सिर की ऊंचाई को ठीक किया जिससे उसका मुँह उनके लंड के बराबर ऊपर हो गया।
अब मास्टरजी ने उसे निर्देश देने शुरू किये,”प्रगति, अपना मुँह पूरा खोलो!”
प्रगति ने मुँह खोल लिया।
“और खोलो !”
प्रगति ने जितना हो सकता था और खोल लिया।
“अब अपनी जीभ बाहर निकालो !”
प्रगति ने जीभ बाहर निकाल ली और दुर्गा माँ का सा रूप धारण कर लिया !!
“अब ऐसे ही रहना। मैं लंड अन्दर डालूँगा। घबराना नहीं !”
यह कहते हुए मास्टरजी लंड उसके मुँह में डालने लगे। प्रगति की जीभ अचानक उसके मुँह में अन्दर चली गई।
मास्टरजी,”प्रगति, जीभ बाहर रखने की कोशिश करो। मेरे लंड को जीभ बाहर रखते हुए ही मुँह में लेना है, समझ गई ?”
“जी मास्टरजी !”
एक बार फिर कोशिश की पर प्रगति की ज़ुबान एकाएक अन्दर चली जाती थी। पर वह खुद ही बोली,” मास्टरजी, ठहरिये !” और फिर एक लम्बी सांस लेने के बाद और अपने सिर को तकिये पर ठीक से रखने के बाद बोली,”चलो, इस बार देखते हैं क्या होता है !” और अपना मुँह चौड़ा खोल कर जीभ बाहर खींच कर तैयार हो गई। मास्टरजी ने अपना लंड फिर से उसके मुँह में डालने का प्रयत्न किया। इस बार लंड अन्दर चला गया और जीभ बाहर ही रही। जीभ के बाहर रहने से प्रगति के मुँह में लंड के लिए जगह बन गई और लगभग पूरा लंड अन्दर चला गया। मास्टरजी ने प्रगति के शरीर को थपथपा कर शाबाशी दी और पूछा “कैसा लग रहा है ?”