मास्टरजी ने कहा- इस मुद्रा में तो तुम्हारे हाथ थक जायेंगे, बेहतर होगा कि कुर्ता उतार ही दो।
यह कहते हुए उन्होंने उसका कुर्ता उतारना शुरू कर दिया। प्रगति कुछ कहती इससे पहले ही उसका कुर्ता उतर चुका था।
प्रगति ने कुर्ते के नीचे ब्रा पहन रखी थी। मास्टरजी ने उसे सोफे पर उल्टा लेटने को कहा और उसके पास आकर बैठ गए।
उनके बैठने से सोफा उनकी तरफ झुक गया जिससे प्रगति सरक कर उनके समीप आ गई। उसका मुँह सोफे के अन्दर था और शर्म के मारे उसने अपनी आँखों को अपने हाथों से ढक लिया था।
पर मास्टरजी ने उसकी पीठ पर अपनी एक ऊँगली से कोई नक्शा सा बनाया मानो कोई हिसाब कर रहे हों या कोई रेखाचित्र खींच रहे हों। ऐसा करते हुए वे बार बार ऊँगली को उसकी ब्रा के हुक के टकरा रहे थे मानो ब्रा का फीता उनको कोई बाधा पहुंचा रहा था।
उन्होंने आखिर प्रगति को बोला कि वे एक मंत्र उसकी पीठ पर लिख रहे हैं जिससे उसके परिवार की सेहत अच्छी रहेगी और उसे भी लाभ होगा। यह कहते हुए उन्होंने उसकी ब्रा का हुक खोल दिया।
प्रगति घबरा कर उठने लगी तो मास्टरजी ने उसे दबा दिया और बोले घबराने और शरमाने की कोई बात नहीं है। यहाँ पर तुम बिल्कुल सुरक्षित हो!!
उस गाँव में बहुत कम लोगों को पता था कि मास्टरजी, यहाँ आने से पहले, आंध्र प्रदेश के ओंगोल शहर में शिक्षक थे और वहाँ से उन्हें बच्चों के साथ यौन शोषण के आरोप के कारण निकाल दिया था।
इस आरोप के कारण उनकी सगाई भी टूट गई थी और उनके घरवालों तथा दोस्तों ने उनसे मुँह मोड़ लिया था।
अब वे अकेले रह गए थे। उन्होंने अपना प्रांत छोड़ कर तमिलनाडु में नौकरी कर ली थी जहाँ उनके पिछले जीवन के बारे में कोई नहीं जानता था।
उन्हें यह भी पता था कि उन्हें होशियारी से काम करना होगा वरना न केवल नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा, हो सकता है जेल भी जाना पड़ जाये।
उन्होंने प्रगति की पीठ पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना दी कि वे उसकी मर्ज़ी के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे।
अचानक, मास्टरजी चोंकने का नाटक करते हुए बोले- तुम्हारी पीठ पर यह सफ़ेद दाग कब से हैं?’
प्रगति ने पूछा- कौन से दाग?’
तो मास्टरजी ने पीठ पर 2-3 जगह ऊँगली लगाते हुए बोला- यहाँ यहाँ पर!’ फिर 1-2 जगह और बता दी।
प्रगति को यह नहीं पता था, बोली- मुझे नहीं मालूम मास्टरजी, कैसे दाग हैं?
मास्टरजी ने चिंता जताते हुए कहा- यह तो आगे चल कर नुकसान कर सकते हैं और पूरे शरीर पर फैल सकते हैं। इनका इलाज करना होगा।
प्रगति ने पूछा- क्या करना होगा?’
मास्टरजी ने बोला- घबराने की बात नहीं है। मेरे पास एक आयुर्वैदिक तेल है जिसको पूरे शरीर पर कुछ दिन लगाने से ठीक हो जायेगा। मेरे परिवार में भी 1-2 जनों को था। इस तेल से वे ठीक हो गए। अगर तुम चाहो तो मैं लगा दूं।’
प्रगति सोच में पड़ गई कि क्या करे।
उसका असमंजस दूर करने के लिए मास्टरजी ने सुझाव दिया कि बेहतर होगा यह बात कम से कम लोगों को पता चले वरना लोग इसे छूत की बीमारी समझ कर तुम्हारे परिवार को गाँव से बाहर निकाल देंगे।
फिर थोड़ी देर बाद खुद ही बोले- तुम्हारा इलाज मैं यहाँ पर ही कर दूंगा। तुम अगले 7 दिनों तक स्कूल के बाद यहाँ आ जाना। यहीं पर तेल की मालिश कर दूंगा और उसके बाद स्नान करके अपने घर चले जाया करना। किसी को पता नहीं चलेगा और तुम्हारे यह दाग भी चले जायेंगे। क्या कहती हो?
बेचारी प्रगति क्या कहती। वह तो मास्टरजी के बुने जाल में फँस चुकी थी। घरवालों को गाँव से निकलवाने के डर से उसने हामी भर दी। मास्टरजी अन्दर ही अन्दर मुस्करा रहे थे।
मास्टरजी ने कहा- नेक काम में देरी नहीं करनी चाहिए। अभी शुरू कर देते हैं!’
वे उठ कर अन्दर के कमरे में चले गए और वहाँ से एक गद्दा और दो चादर ले आये। गद्दे और एक चादर को फर्श पर बिछा दिया और दूसरी चादर प्रगति को देते हुए बोले- मैं यहाँ से जाता हूँ, तुम कपड़े उतार कर इस गद्दे पर उल्टी लेट जाओ और अपने आप को इस चादर से ढक लो। जब तुम तैयार हो जाओ तो मुझे बुला लेना।
प्रगति को यह ठीक लगा और उसने सिर हिला कर हाँ कर दी। मास्टरजी फट से दूसरे कमरे में चले गए।
उनके जाने के थोड़ी देर बाद प्रगति ने इधर उधर देखा और सोफे से उठ खड़ी हुई। उसने कभी भी अपने कपड़े किसी और घर में नहीं उतारे थे इसलिए बहुत संकोच हो रहा था।
पर क्या करती।
धीरे धीरे हिम्मत करके कपड़े उतारने शुरू किये और सिर्फ चड्डी में गद्दे पर उल्टा लेट गई और अपने ऊपर चादर ले ली। थोड़ी देर बाद उसने मास्टरजी को आवाज़ दी कि वह तैयार है।